main brahma hoon.. main janya hoon,
vikraal main.. mahakaal main,
main prithvi bhi, aakash bhi,
main door bhi, main paas bhi,
main rachnakar, main vinaash bhi,
main aadi hoon main annt bhi,
rache jo saare granth bhi,
kho chuki jo wo aas bhi,
vikraal main.. mahakaal main,
main prithvi bhi, aakash bhi,
main door bhi, main paas bhi,
main rachnakar, main vinaash bhi,
main aadi hoon main annt bhi,
rache jo saare granth bhi,
kho chuki jo wo aas bhi,
main kal bhi hoon main aaj bhi,
main kan kan mein nivaas hoon,
kabhi hoon komal, main kathor bhi,
main vaas kerta hoon chaaro aur,
main kaalo ka bhi kaal hoon,
main daksha mahakaal hoon,
mujh ko samajhna sambhav kaha,
main sayam mein vikraal hoon,
raghukul ki main hi reet hoon,
main panchiyon ka geet hoon,
mujhko kaha tu dhundata,
main to tere hi bheet hoon,
prakash hoon andhakar bhi,
main vijay hoon, main haar bhi,
main registhan ki ret hoon,
main kaala bhi aur shweth bhi,
main kan kan mein vidhimaan hoon,
agyaan bhi aur gyaan hoon,
main vijay hoon, main haar bhi,
main registhan ki ret hoon,
main kaala bhi aur shweth bhi,
main kan kan mein vidhimaan hoon,
agyaan bhi aur gyaan hoon,
main chalta hoon, aur hoon samay,
prarambh hoon aur annt bhi,
kehte hain mujhko bhole nath,
devo ke dev mahadev bhi.
मैं ब्रह्म हूँ.. मैं जन्य हूँ,
विकराल मैं.. महाकाल मैं,
मैं पृथ्वी भी.. आकाश भी,
मैं दूर भी.. मैं पास भी,
मैं रचनाकार.. मैं विनाश भी,
मैं ही आदि हूँ और अंत भी,
रचे जो हैं.. सारे ग्रन्थ भी,
खो चुकी हो जो आस भी,
मैं कल भी हूँ.. मैं आज भी,
मैं कण कण में निवास हूँ,
कभी हूँ कोमल.. मैं कठोर भी,
मैं वास करता हूँ चारो और,
मैं कालो का भी काल हूँ,
मैं दक्ष महाकाल हूँ,
मुझ को समझना संभव कहा,
मैं सवयं में विकराल हूँ,
रघुकुल की मैं ही रीत हूँ,
मैं पंछियों का गीत हूँ,
मुझ को कहा तू ढूंढता,
मैं तो तेरे ही भीत हूँ,
प्रकाश हूँ.. अंधकार भी,
मैं विजय हूँ और हार भी,
मैं रेगिस्तान की रेत हूँ,
मैं कला भी.. मैं स्वेत भी,
मैं कण कण में विधिमान हूँ,
अज्ञान भी और ज्ञान भी,
मैं चलता हूँ और हूँ समय,
प्राम्भ हूँ और अंत भी,
कहते हैं मुझ को भोले नाथ,
देवो के देव महादेव भी !!
prarambh hoon aur annt bhi,
kehte hain mujhko bhole nath,
devo ke dev mahadev bhi.
मैं ब्रह्म हूँ.. मैं जन्य हूँ,
विकराल मैं.. महाकाल मैं,
मैं पृथ्वी भी.. आकाश भी,
मैं दूर भी.. मैं पास भी,
मैं रचनाकार.. मैं विनाश भी,
मैं ही आदि हूँ और अंत भी,
रचे जो हैं.. सारे ग्रन्थ भी,
खो चुकी हो जो आस भी,
मैं कल भी हूँ.. मैं आज भी,
मैं कण कण में निवास हूँ,
कभी हूँ कोमल.. मैं कठोर भी,
मैं वास करता हूँ चारो और,
मैं कालो का भी काल हूँ,
मैं दक्ष महाकाल हूँ,
मुझ को समझना संभव कहा,
मैं सवयं में विकराल हूँ,
रघुकुल की मैं ही रीत हूँ,
मैं पंछियों का गीत हूँ,
मुझ को कहा तू ढूंढता,
मैं तो तेरे ही भीत हूँ,
प्रकाश हूँ.. अंधकार भी,
मैं विजय हूँ और हार भी,
मैं रेगिस्तान की रेत हूँ,
मैं कला भी.. मैं स्वेत भी,
मैं कण कण में विधिमान हूँ,
अज्ञान भी और ज्ञान भी,
मैं चलता हूँ और हूँ समय,
प्राम्भ हूँ और अंत भी,
कहते हैं मुझ को भोले नाथ,
देवो के देव महादेव भी !!
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