करवा चौथ व्रत

यह व्रत हर साल आता है लेकिन सही विधि से न करने की वजह से इसका फल नहीं प्राप्‍त हो पाता। सुहागिन महिलाओं के लिये यह दिन काफी अहम है क्‍योंकि वह यह व्रत पति की लंबी आयु और घर के कल्‍याण के लिये रखती हैं। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत केवल शादी-शुदा महिलाओं के लिये ही होता है। अक्‍सर महिलाएं अपनी मां या फिर अपनी सास से करवा चौथ करने की विधि सीखती हैं लेकिन अगर आप अपने घर से दूर रहती हैं और यह व्रत करना चाहती हैं तो इसकी विधि जाननी जरुरी है। आइये जानते क्‍या है करवा चौथ के व्रत की सही विधि ।

करवा चौथ व्रत के लिये जरुरी सामग्री :-

1. करवा चौथ कि किताब: यह किताब कथा पढ़ने के लिये जरुरी है। इस कथा कि किताब में लिखी हुई कहानी को घर की कोई बुजुर्ग महिला या फिर पंडित जी पढते हैं।

2. पूजा थाली: पूजा की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया और सिंदूर रखें। पंजाब में व्रत रखने वाली महिलाएं थाली में स्‍टील की छननी, पानी भरा गिलास और लाल धागा रखती हैं तो वहीं पर राजस्‍थान में महिलाएं गेहूं, मिट्टी आदि रखती हैं।

3. करवा : काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे।

4. श्रृंगार वस्‍तुएं: अपने पति को लुभाने के लिये महिलाएं उस दिन दुल्‍हन की तरह श्रृंगार करती हैं। हाथों में महंदी और चूडियां पहनती हैं।

5. पूजन विधि: बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

6. खाने की वस्‍तुएं: हर घर में अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां बनाई जाती हैं। कई लोग कचौड़ी, सब्‍जी और अन्‍य व्‍यंजन बनाते हैं।

करवा चौथ व्रत विधि :-

1. सूर्योदय से पहले स्‍नान कर के व्रत रखने का संकल्‍प लें और सास दृारा भेजी गई सरगी खाएं। सरगी में , मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और साज-श्रंगार का समान दिया जाता है। सरगी में प्‍याज और लहसुन से बना भोजन न खाएं।

2. सरगी करने के बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जाता है। मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का ध्‍यान पूरे दिन अपने मन में करती रहें।

3. दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इस चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है जो कि बड़ी पुरानी परंपरा है।

4. आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।

5. फिर पीली मिट्टी से मां गौरी और गणेश जी का स्‍वरूप बनाइये। मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्‍वरूप बिठाइये। इन स्‍वरूपों की पूजा संध्‍याकाल के समय पूजा करने के काम आती है।

6. माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजें और उन्‍हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्‍य सुहाग, श्रींगार सामग्री अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें।

7. वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। गेहूं और ढक्‍कन में शक्‍कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्‍वास्तिक बनाएं।

8. गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें। इस मंत्र का जाप करें -
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'

ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही पूजा करती हैं। हर क्षेत्र के अनुसार पूजा करने का विधान और कथा अलग-अलग होता है। इसलिये कथा में काफी ज्‍यादा अंतर पाया गया है।

9. अब करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिये। कथा सुनने के बाद आपको अपने घर के सभी वरिष्‍ठ लोगों का चरण स्‍पर्श कर लेना चाहिये।

10. रात्रि के समय छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें उसे अर्घ्य प्रदान करें। फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें। फिर पति देव को प्रसाद दे कर भोजन करवाएं और बाद में खुद भी करें।

Comments