क्यों वर्जित हैं सनातन धर्म में भगवान के प्रशाद में प्याज और लहसुन?



सनातन धर्म में भगवान के प्रशाद में प्याज और लहसुन वर्जित हैं क्योंकि इन्हें मांस के समान माना जाता है। मान्यता है कि प्याज और लहसुन का सेवन करने से शरीर राक्षसों के शरीर की तरह मजबूत तो होता ही है साथ ही उनके सोचने-समझने की शक्ति राक्षसों की तरह दूषित हो जाती है।

समुद्र मंथन के उपरांत जब देवता और दानव अमृत के लिए लड़ने लगे तो श्री हरि अति सुंदर नारी रूप धारण करके देवता और दानवों के बीच पहुंच गए। उनके रूप पर मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया। मोहिनी रूप धारी भगवान ने कहा," मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं, चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी।"


सभी ने मोहिनी रूपी भगवान की बात मान ली। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। दो राक्षस राहू और केतू देवताओं की पंक्ति में आ कर बैठ गए। भगवान ने उन्हें भी देवता रूप जान अमृत की कुछ बूंदे पिलाई ही थी की सूर्य व चंद्रमा ने भगवान को बताया कि यह दोनों तो असुर हैं। भगवान ने उसी समय उनके सिर धड़ से अलग कर दिए।

अमृत का प्रभाव उनके गले में ही रह गया शरीर के भीतर तक नहीं पहुंच पाया इसलिए दोनों राक्षसों के मुंह अमर हो गए। आज भी जब नव ग्रह पूजन किया जाता है तो राहू और केतू के केवल सिर को ही जीवित माना जाता है।

जब सुदर्शन चक्र द्वारा राहू और केतू के सिर कटे तो उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे धरती पर गिर गयी। इन्हीं बूंदों से प्याज और लहसुन की उपज हुई। अमृत की बूंदों से उत्पन्न होने के कारण यह रोगों और रोगाणुओं के लिए संजिवनी बूटी के समान प्रभाव डालती हैं।

राक्षसों के मुंह में जाने के कारण इनसे तेज गंध आती है और इन्हें अपवित्र माना जाता है इसलिए यह राक्षसी प्रवृति के भोजन कहलाते हैं। मान्यता है की इन्हें भोज्य पदार्थों के रूप में कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए अन्यथा तामषिक वृत्य, अशांति और चिन्ताएं जीवन में बिन बुलाए मेहमान की तरह घर कर जाती हैं।

Comments